September 11, 2011

मेघ न आये

सूखे खेत किसानिन सूखे
सूखे ताल-तलइयाँ
भुइयाँ पर की कुइयाँ सूखी
तलफे ढोर-चिरइयाँ
मेघ न आये! 

आसमान में सूरज धधके
दुर्दिन झाँक रहे
बीज फोड़कर निकले अंकुर
ऊपर ताक रहे
मेघ न आये !

सावन बीता, भादों बीते
प्यासे घट रीते के रीते
मारी गई फसल बरखा बिन
मँहगे हुए पिरीते
धन के लोभी दाँत निकाले
सपने गाँठ रहे
बीज फोड़कर निकले अंकुर
ऊपर ताक रहे
मेघ न आये !

आये भी तो छुपते बादल
धूल भरे चितकबरे बादल
पछुआ के हुलसाये बादल
राजनीति पर छाये बादल
पूर्वोत्तर के पवन झकोरे
धरती माप रहे
बीज फोड़ कर निकले अंकुर
ऊपर ताक रहे
मेघ न आये !

-शील


( सम्यक पत्रिका के नवगीत विशेषांक से )

1 comment: