August 30, 2011

महानगर के जंगल में

महानगर के जंगल में हम
घूम रहे होते

शायद हमने कर डाले
अनचाहे समझौते
संधि-पत्र तो लिखे
प्यार की कीमत नहीं चुकी
अपने ही अधरों में बंदी
अपनी हँसी-खुशी
फूटे रिश्तों में
बैलों से जोते
महानगर के जंगल में हम
घूम रहे होते

अम्मा की रामायण-गीता
सहसा रूठ गई
हरिद्वार के गंगाजल की
शीशी फूट गई
पानी पर तिनके की नाईं
घूमे समझौते
शायद हमने कर डाले
अनचाहे समझौते

-अश्वघोष

( 'गई सदी के स्पर्श' नवगीत संग्रह,-2006 से साभार )

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