यह ज़गह है कौन-सी, बोलो
जहाँ पर
अभी भी बच्चे कहानी सुन रहे हैं ।
अभी भी बच्चे कहानी सुन रहे हैं ।
बात होती झील की भी
है यहाँ पर
यह इधर क्या -
लग रहा जैसे दुआघर
चल रहा करघा कहीं है
क्या अभी भी
रेशमी चादर जुलाहे बुन रहे हैं ।
दिख रहा जो उधर
है क्या मेमना वह
हुई कलकल- क्या कहीं सोता रहा बह
आई ख़ुशबू
क्या कहीं पर है बगीचा
जहाँ आशिक फूल अब भी चुन रहे हैं।
चल रहा करघा कहीं है
क्या अभी भी
रेशमी चादर जुलाहे बुन रहे हैं ।
दिख रहा जो उधर
है क्या मेमना वह
हुई कलकल- क्या कहीं सोता रहा बह
आई ख़ुशबू
क्या कहीं पर है बगीचा
जहाँ आशिक फूल अब भी चुन रहे हैं।
पक्षियों की चहचहाहट भी
इधर है
नीड़ जिस पर
सुनो, वह बरगद किधर है
यह करिश्मा हुआ कैसे
क्या यहाँ पर
बर्फ़ होते वक़्त में फागुन रहे हैं ।
इधर है
नीड़ जिस पर
सुनो, वह बरगद किधर है
यह करिश्मा हुआ कैसे
क्या यहाँ पर
बर्फ़ होते वक़्त में फागुन रहे हैं ।
-कुमार रवीन्द्र
( " बराबर" पत्रिका संवत-२०६० अंक से साभार )
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