July 15, 2024

पुरवा जो डोल गई

पुरवा जो डोल गई 
घटा-घटा आँगन  में 
जूड़े-सा खोल गई। 

बूँदों का लहरा दीवारों को चूम गया 
मेरा मन सावन की गलियों में झूम गया
श्याम रंग परियों से अंबर है घिरा हुआ
घर को फिर लौट चला बरसों का फिरा हुआ
मइया के मंदिर में-
डुग-डुग-डुग-डुग-
बधइया फिर बोल गई। 

बरगद की जड़ें पकड़ चरवाहे झूल रहे
विरहा की तानों में विरहा सब भूल रहे
अगली सहालक तक व्याहों की बात टली
बात बड़ी छोटी पर बहुतों को बहुत खली
नीम तले चौरा पर-
मीरा की गुड़िया के
व्याह वाली चर्चा 
रस घोल गई। 

खनक चूडियों की सुना मेंहदी के पातों ने
कलियों पै रंग फेरा मालिन की बातों ने
धानों के खेतों में गीतों का पहरा है
चिड़ियों की आँखो में ममता का सेहरा है
नदिया से उमक-उमक
मछली वह छमक-छमक
पानी की चूनर को
दुनिया से मोल गई  

झूले के झूमक हैं शाखों के कानों में 
शबनम की फिसलन है केले की रानों में 
ज्वार और अरहर की हरी-हरी सारी है
सनई के फूलों की गोटा किनारी है   
गाँवों की रौनक है
मेहनत की बांँहों में 
धोबिन भी पाटे पर
हइया छू बोल गई। 

-डॉ. शिव बहादुर सिंह भदौरिया।

9 comments:

  1. अति मनमोहक रचना।
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १६ जुलाई २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. वाह !! लोकगीत के रस से भरा सुंदर गीत

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  3. वाह! बेहतरीन सृजन

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  4. बहुत सुन्दर सृजन

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  5. बहुत बहुत सुन्दर रचना

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  6. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 17 जुलाई अप्रैल 2024को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  7. बहुत ही सुंदर और मनभावन रचना

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  8. वाह! मधुर नवगीत 👌👌👌🙏

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