शरद की स्वर्ण किरण बिखरी !
दूर गये कज्जल घन, श्यामल-
अम्बर में निखरी !
दूर गये कज्जल घन, श्यामल-
अम्बर में निखरी !
शरद की स्वर्ण किरण बिखरी !
मन्द समीरण, शीतल सिहरन,
तनिक अरुण द्युति छाई,
रिमझिम में भीगी धरती,
रिमझिम में भीगी धरती,
यह चीर सुखाने आई,
लहरित शस्य-दुकूल हरित,
लहरित शस्य-दुकूल हरित,
चंचल अचंल-पट धानी,
चमक रही मिट्टी न,
चमक रही मिट्टी न,
देह दमक रही नूरानी,
अंग-अंग पर धुली-धुली,
शुचि सुन्दरता सिहरी !
अंग-अंग पर धुली-धुली,
शुचि सुन्दरता सिहरी !
राशि-राशि फूले फहराते
काश धवल वन-वन में,
हरियाली पर तोल रही
हरियाली पर तोल रही
उड़ने को नील गगन में,
सजल सुरभि देते नीरव
सजल सुरभि देते नीरव
मधुकर की अबुझ तृषा को,
जागरूक हो चले कर्म के
जागरूक हो चले कर्म के
पंथी ल्क्ष्य-दिशा को,
ले कर नई स्फूर्ति कण-कण पर
नवल ज्योति उतरी !
ले कर नई स्फूर्ति कण-कण पर
नवल ज्योति उतरी !
मोहन फट गई प्रकृति की,
अन्तर्व्योम विमल है,
अन्धस्वप्न फट व्यर्थ बाढ़ का
अन्धस्वप्न फट व्यर्थ बाढ़ का
घटना जाता जल है,
अमलिन सलिला हुई सरी,
अमलिन सलिला हुई सरी,
शुभ-स्निग्ध कामनाओं की,
छू जीवन का सत्य,
छू जीवन का सत्य,
वायु बह रही स्वच्छ साँसों की,
अनुभवमयी मानवी-सी यह
लगती प्रकृति-परी !
अनुभवमयी मानवी-सी यह
लगती प्रकृति-परी !
-राजेन्द्र प्रसाद सिंह
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 13 अक्तूबर 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteसहज सुखद सृजन । सजीव चित्रण ।
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत रचना
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