June 3, 2024

शरद की स्वर्ण किरण बिखरी

शरद की स्वर्ण किरण बिखरी !
दूर गये कज्जल घन, श्यामल-
अम्बर में निखरी !

शरद की स्वर्ण किरण बिखरी !
मन्द समीरण, शीतल सिहरन, 
तनिक अरुण द्युति छाई,
रिमझिम में भीगी धरती, 
यह चीर सुखाने आई,
लहरित शस्य-दुकूल हरित, 
चंचल अचंल-पट धानी,
चमक रही मिट्टी न, 
देह दमक रही नूरानी,
अंग-अंग पर धुली-धुली,
शुचि सुन्दरता सिहरी !

राशि-राशि फूले फहराते 
काश धवल वन-वन में,
हरियाली पर तोल रही 
उड़ने को नील गगन में,
सजल सुरभि देते नीरव 
मधुकर की अबुझ तृषा को,
जागरूक हो चले कर्म के 
पंथी ल्क्ष्य-दिशा को,
ले कर नई स्फूर्ति कण-कण पर
नवल ज्योति उतरी !

मोहन फट गई प्रकृति की, 
अन्तर्व्योम विमल है,
अन्धस्वप्न फट व्यर्थ बाढ़ का 
घटना जाता जल है,
अमलिन सलिला हुई सरी,
शुभ-स्निग्ध कामनाओं की,
छू जीवन का सत्य, 
वायु बह रही स्वच्छ साँसों की,
अनुभवमयी मानवी-सी यह
लगती प्रकृति-परी !

-राजेन्द्र प्रसाद सिंह

6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 13 अक्तूबर 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सुन्दर

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  3. बहुत ही सुन्दर रचना

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  4. बहुत ही सुन्दर रचना

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  5. सहज सुखद सृजन । सजीव चित्रण ।

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  6. बेहद खूबसूरत रचना

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