सपने में आये हो बैठो
कोई बात करो।
मौसम बहुत उदार यहाँ का
उर का ताप हरो।।
स्वप्न-देश में मेरा शासन
मैं ही इसकी रानी
सुधियाँ तुम्हें खींच लाई हैं
करने को मनमानी
निष्कासित हर नियम यहाँ से,
मन चाहा बिचरो।
सपने में आये हो बैठो
कोई बात करो।।
बैसे तो मैं मात्र व्यथा हूँ
सपने में हूँ नारी
पढ़कर नयन हृदय पर लिख दूँ
भाषा अति शृंगारी
ऐसे में मत रहो देवता
मानव बन निखरो।
सपने में आये हो बैठो
कोई बात करो।।
जागूँ तो कबीर की साखी
सोऊँ, पंक्ति बिहारी
मुख खोलूँ तो बंजारिन हूँ
घूँघट में ब्रजनारी
विद्यापति की मुखर नायिका
इतना ध्यान धरो।
सपने में आये हो बैठो
कोई बात करो।।
-ज्ञानवती सक्सेना
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