March 19, 2021

बंद करो ये लिखना-विखना

सच लिखने से डर लगता है?
बंद करो, 
ये लिखना- विखना !

कब तक गाओगे-
'मुखड़ा है 
चाँद का टुकड़ा'
देखा है क्या 
मुखड़े के पीछे का 
दुखड़ा 
दरबारों में 
लोट लगाते रहना है तो-
छोड़ो ये कवि जैसा दिखना !

दुःख में, पीड़ा में, 
चिन्ता में
बोलो-
कब-कब मुस्काये हो
जो औरों से कहते हो,
क्या-
खुद भी वह सब कर पाये हो
पहले तो अपने को बाँचो
फिर 
दुनिया पर कविता लिखना!

पैदा करो 
एक चिनगारी प्रतिरोधों की-
संवेदन की
और दहकने दो भट्ठी
पल-प्रतिपल
अपने अंतर्मन की 
सीखो कविवर, 
इस भट्ठी में सुबह-शाम
रोटी-सा सिंकना !
सच कहने से... 

-जय चक्रवर्ती

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