August 15, 2018

नन्ही चिड़िया

छोटा-सा आकाश मिला है
फिर भी पंख पसार रही है
नन्ही चिड़िया !

सोच रही है, कभी कहीं तो
एक बड़ा आकाश मिलेगा
जिसमें होंगे भूरे बादल
इंद्रधनुष भी कहीं खिलेगा
साध लिये लंबी उड़ान की
खुद को कर तैयार रही है
नन्ही चिड़िया !

मिले बड़ा आकाश कहाँ, कब
यह सब आखिर किसे पता है
पर चिड़िया यह जान चुकी है
यह उसकी आवश्यकता है
यह क्या कम है, इस कोशिश में
हाथ-पाँव तो मार रही है
नन्ही चिड़िया !

खुला-खिला आकाश समाये
मुट्ठी में, उसका सपना है
जितना रहे पहुँच के भीतर
समझो, उतना ही अपना है
अपने कस-बल से उड़ान की
प्रतिभा सतत निखार रही है
नन्ही चिड़िया !

सपना सिर्फ न सपना है यह
सपना उसकी जिजीविषा है
पूरा इसे करे, इस क्रम में
नाप रही वह दिशा-दिशा है
अपनी जिजीविषा को क्रमशः
ऊँचा अधिक उभार रही है
नन्ही चिड़िया !

दाना-पानी से भी ज्यादा
उसको प्रिय अपनी आज़ादी
खुली हवा में मुक्त साँस ले
यही ज़रूरत है बुनियादी
करती है संधान निरंतर
हार नहीं स्वीकार रही है
नन्ही चिड़िया !

पर जाने किस प्रत्याशा में
मेरी ओर निहार रही है
नन्ही चिड़िया !

-योगेन्द्र दत्त शर्मा

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