July 1, 2018

खुद से खुद की बातें

खुद से खुद की
बतियाहट
हम, लगता भूल गए ।

डूब गए हैं
हम सब इतने
दृश्य कथाओं में
स्वर कोई भी
बचा नहीं है
शेष, हवाओं में

भीतर के जल की
आहट
हम, लगता भूल गए ।

रिश्तों वाली
पारदर्शिता लगे
कबंधों-सी
शामें लगती हैं
थकान से टूटे
कंधों-सी

संवादों की
गरमाहट
हम, लगता भूल गए ।


-माहेश्वर तिवारी 

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