June 15, 2018

पुरवा जो डोल गई

 पुरवा जो डोल गई
घटा-घटा आँगन में
जूड़े से खोल गई

बूँदों का लहरा दीवारों को
चूम गया
मेरा मन सावन की 
गलियों में झूम गया
श्याम रंग परियों से 
अम्बर है घिरा हुआ
घर को फिर लौट चला 
बरसों का फिरा हुआ
मइया के मन्दिर में
अम्मा की मानी हुई
डुग-डुग-डुग-डुग बधइया
फिर बोल गई

बरगद की जड़ें पकड़
चरवाहे झूल रहे
बिरहा की तानों में बिरहा
सब भूल रहे
अगली सहालक तक व्याहों
की बात टली
बात बड़ी छोटी पर बहुतों को
बहुत खली
नीम तले चौरा पर
मीरा की गुड़िया के
व्याह वाली चर्चा
रस घोल गई

खनक चूडियों की सुना
मेहँदी की पातों ने
कलियों पे रंग फेरा मालिन
की बातों ने
धानो के खेतों में
गीतों का पहरा है
चिड़ियों की आँखों में
ममता का सेहरा है
नदिया से उमक उमक
मछली वो छमक छमक
पानी की चूनर को
दुनिया से मोल गई

झूले के झूमक हैं
शाखा के कानों में
शबनम की फिसलन है
केले की रानों में
ज्वार और अरहर की
हरी हरी सारी है
सनई के फूलों की
गोटा किनारी है
गाँवो की रौनक
है मेहनत की बाँहों में
धोबिन भी पाटे पर
हइया छू बोल गई
पुरवा जो डोल गई

-डा० शिव बहादुर सिंह भदौरिया

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