बाट-बाट मुरझे कचनार
बाँसुरी बजाना नहींआँगन में मसले हैं
कदम-कदम फूल
पलकों पर बिछे हुए
सदियों के शूल
राह-राह चलते बटमार
चाँदनी उगाना नहीं
शब्द-शब्द जगा रहे
जादू के महल
लोग जड़े पत्थर-से
कौन करे पहल
गाँव-गाँव जगे गुनहगार
सीटियाँ बुलाना नहीं
शहरों से पूछ रहा
पता वही आदिम
साँपों-सा फन काढ़े
ताक रहा खादिम
पाँव-पाँव सटते गुफ्तार
झाँड़ियाँ उगाना नहीं
-रामनरेश पाठक
(गीत वसुधा से साभार)
आदरणीय व्योम जी आभार आपका ..क्या सुन्दर नवगीत प्रस्तुत किया श्रद्धेय रामनरेश पाठक जी के । कथ्य की गहनता और शब्दों का सर्द प्रवाह ।।अद्भुत ।।
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