August 3, 2023

नदी का बहना मुझमें हो

मेरी कोशिश है
कि नदी का बहना मुझमें हो

तट से सटे कछार घने हों
जगह-जगह पर घाट बने हों
टीलों पर मन्दिर हों जिनमें
स्वर के विविध वितान तने हों
मीड़-मूर्च्छनाओं का
उठना-गिरना मुझ में हो

जो भी प्यास पकड़ ले कगरी
भर ले जाये ख़ाली गगरी
छूकर तीर उदास न लौटें
हिरन कि गाय कि बाघ कि बकरी
मच्छ, मगर, घड़ियाल
सभी का रहना मुझमें हो

मैं न रुकूँ संग्रह के घर में
धार रहे मेरे तेवर में
मेरा बदन काटकर नहरें
ले जायें पानी ऊपर में
जहाँ कहीं हो
बंजरपन का मरना मुझ में हो

-शिवबहादुर सिंह भदौरिया

2 comments:

  1. तट से सने कछार घने हों
    जगह-जगह पर घाट बने हों
    अति सुंदर

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  2. बहुत सुंदर गीत
    नदी का बहना मुझ में हो

    मैं न रुकूं संग्रह के घर में
    धार रहे मेरे तेवर में

    बहुत बहुत बधाई

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