आँखों के गमलों में
गेंदे आने को हैंनये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .
ये आये तब
प्रीत पलों में जब करवट है
धुआँ भरा है अहसासों में
गुम आहट है
फिर भी देखो
एक झिझकती कोशिश तो की !
भले अधिक मत खुलना
तुम, पर
कुछ सुन जाना.. .
संवादों में--
यहाँ-वहाँ की; मौसम; नारे..
निभते हैं टेबुल-मैनर में
रिश्ते सारे
रौशनदानी कहाँ कभी
एसी-कमरों में ?
बिजली गुल है,
खिड़की-पल्ले तनिक हटाना.. .
अच्छा कहना
बुरी तुम्हें क्या बात लगी थी
अपने हिस्से
बोलो फिर क्यों ओस जमी थी ?
आँखों को तुम
और मुखर कर नम कर देना
इसी बहाने होंठ हिलें तो
सब कह जाना..
-सौरभ पाण्डेय
इलाहाबाद
मोबा॰ 09919889911
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