पके पान झर गये
डाल पर नये पान आयेपल्लव के धर देह
नेह के नए प्रान आये ।
लाल हो गयी डाल
हो गया धरती-तल पीला
सर्जनशीला प्रकृति-
कर रही रसवंती लीला
पंसु प्राण कोकिल ने
मधु के नए गान गाये ।
अर्थ चक्र की आँख-
बचाकर, वन-उपवन फूले
नियत समय पर आ जाना-
ऋतुराज नहीं भूले
राजनीति के धनी
न इसका मर्म जान पाये ।
भूमिति नारी, बीजगणित नर,
अंकगणित जीवन
पूर्ण न होगा अंश,
सुने बिन अंशी-वंशी-स्वन
क्यों न, पूरा-नव पान,
तुम्हारा, मुझे ध्यान आये?
पके पान झर गये,
डाल पर नए पान आये।
-नरेन्द्र शर्मा
[ "पाँच जोड़ बाँसुरी" से साभार]
बहुत सुन्दर! काव्य रस निर्झर बह रहा है। बधाई आपको!
ReplyDeleteWAAH ..BAHUT SUNDAR NAVGEET ...ANUBOOTI MAIN MAIN BHI PADHAA THAA ...."पके पान झर गये"
ReplyDeleteधन्यवाद भावना तिवारी जी
ReplyDeleteआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (24-05-2013) को "ब्लॉग प्रसारण-5" पर लिंक की गयी है. कृपया पधारे. वहाँ आपका स्वागत है.
ReplyDeleteसुंदर भाव लिए रचना..
ReplyDeleteवाह बहुत बढ़िया नवगीत
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