April 25, 2013

पके पान झर गये

पके पान झर गये
डाल पर नये पान आये
पल्लव के धर देह
नेह के नए प्रान आये ।

लाल हो गयी डाल
हो गया धरती-तल पीला
सर्जनशीला प्रकृति-
कर रही रसवंती लीला
पंसु प्राण कोकिल ने
मधु के नए गान गाये ।

अर्थ चक्र की आँख-
बचाकर, वन-उपवन फूले
नियत समय पर आ जाना-
ऋतुराज नहीं भूले
राजनीति के धनी
न इसका मर्म जान पाये ।

भूमिति नारी, बीजगणित नर,
अंकगणित जीवन
पूर्ण न होगा अंश,
सुने बिन अंशी-वंशी-स्वन
क्यों न, पूरा-नव पान,
तुम्हारा, मुझे ध्यान आये?
पके पान झर गये,
डाल पर नए पान आये।

-नरेन्द्र शर्मा
[ "पाँच जोड़ बाँसुरी" से साभार]

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर! काव्य रस निर्झर बह रहा है। बधाई आपको!

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  2. WAAH ..BAHUT SUNDAR NAVGEET ...ANUBOOTI MAIN MAIN BHI PADHAA THAA ...."पके पान झर गये"

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  3. धन्यवाद भावना तिवारी जी

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  4. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (24-05-2013) को "ब्लॉग प्रसारण-5" पर लिंक की गयी है. कृपया पधारे. वहाँ आपका स्वागत है.

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  5. सुंदर भाव लि‍ए रचना..

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  6. वाह बहुत बढ़िया नवगीत

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