हर गरल पीयूष बन जाता
कंठ विषपायी अगर होतेसर्पदंशों से चुभे रिश्ते
नागफनियों-से उगे नाते
बन्द हैं मन की दराजों में
यातनाओं के बहीखाते
उम्र सहसा गुनगुना उठती
अश्रु चौपाई अगर होते
धुंध है, गहरा धुँधलका है
सांस के उजड़े तपोवन में
सैकड़ों षडयन्त्र लिपटे हैं
आयु के भयभीत चन्दन में
धूप के तेवर बदल जाते
आप अमराई अगर होते।
-सत्येन्द्र कुमार रघुवंशी
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