सुनो, कबीर
बचाकर रखनाअपनी पोथी.
सरल नहीं
गंगा के तट पर
बातें कहना .
घडियालों ने
मानव बनकर
सीखा रहना .
हित की बात
जहर सी लगती
लगती थोथी
बाहर कुछ
अन्दर से कुछ हैं
दुनिया वाले .
उजले लोग
मखमली कपड़े
दिल है काले.
सब ने रखी
ताक पर जाकर
गरिमा जो थी
-त्रिलोक सिंह ठकुरेला
बेहतरीन है सर!
ReplyDeleteसादर
अच्छी रचना
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteमैंने पहली बार हाइकु कविता पढ़ी है.... मेरे लिए बिलकुल नयी विधा .... रचना बहुत ही अच्छी लगी ....बहुत बहुत बधाई .
ReplyDeleteमैंने पहली बार हाइकु कविता पढ़ी है.... मेरे लिए बिलकुल नयी विधा .... रचना बहुत ही अच्छी लगी ....बहुत बहुत बधाई .
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और सधी हुई अद्भुत रचना है। प्रेरणादायक।
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