हम बबूल हैं
पर अच्छे हैंकठिन परिस्थिति में भी अपने
सीने तान खड़े रहते हैं
ऊसर बंजर में भी उगना
उगने पर हँस हँस कर बढ़ना
है विशिष्ट गुणधर्म हमारा
वेद पुराण सभी कहते हैं
नख से शिख तक उपयोगी हैं
निर्विकार हैं हम योगी हैं
मौसम बेमौसम हो फिर भी
फूला और फला करते हैं
दृढ़ता में औरों से आगे
निर्धन की कथरी के तागे
पुरवा चले, चले पछुवाई
हिलें न पाँव अडिग रहते हैं
-शीलेन्द्र कुमार सिंह
भावों से नाजुक शब्द......बेजोड़ भावाभियक्ति....
ReplyDeleteअद्भुत बिम्बात्मकता व सहजता है शीलेन्द्र भैया के इस नवगीत में। इसी भारतीय प्रवृत्ति के कारण हम तमाम अभावों के बीच भी हर सर्वे में दुनिया की एक खुशहाल कौम के तौर पर पाए जाते हैं।
ReplyDelete