October 25, 2011

सुबह उदास हुई


खून सना अखबार बाँचकर
सुबह उदास हुई।

नित्य नये फतवे उछालते
शब्दों का व्यापार
हर बस्ती हो गई कि जैसे
हो मछली बाजार
धमधूसर परिवेश झेलते
तेवर लचर हुए
खून और आँसू से लगभग
हम बेअसर हुए
जीवन,कितनी दूर
मौत अब कितनी पास हुई।

खुली हुई आँखों में भी है
उतरा मोतियाबिन्द
धूप-रोशनी, सब पर छाई
नये किस्म की धुंध
खेल-तमाशे नये-पुराने
कितने बाजीगर
इन्हें ढो रही ऊब-ऊबकर
छोटी-बड़ी उमर
सभी अपाहिज हुए
शहर में घटना खास हुई।

-राधेश्याम शुक्ल
( सम्यक् १० से साभार)


-( एच.टी.एम., विनोद नगर
फीटवाली गली, हिसार, हरियाणा )

4 comments:

  1. शुभकामनाएं--

    रचो रँगोली लाभ-शुभ, जले दिवाली दीप |
    माँ लक्ष्मी का आगमन, घर-आँगन रख लीप ||
    घर-आँगन रख लीप, करो स्वागत तैयारी |
    लेखक-कवि मजदूर, कृषक, नौकर, व्यापारी
    नहीं खेलना ताश, नशे की छोडो टोली |
    दो बच्चों का साथ, रचो मिल सभी रँगोली ||

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  2. आपको दीपावली की ढेरों शुभकामनाएं

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  3. सुन्दर अभिवयक्ति.... शुभ दिवाली....

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  4. धम धूसरपरिवेश झेलते तेवर लचर हुए ...अच्छा नवगीत

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