कैद हो पसीना
ऐसे में जीना भी क्या जीना !
घेरे हों प्रश्न-चिह्न
आँगन, चौराहों को
दौड़ रही हो चुप्पी
फैला दो बाँहों को
दौड़ रही हो चुप्पी
फैला दो बाँहों को
कंठ-चर्म में गाँठें
बेबस नगीना
बेबस नगीना
ऐसे में जीना भी...
जहर बुझी सुइयाँ
हों बेधती शिराओं को
पत्थर-दीवारें
हों थामती हवाओं को
आत्म-बोध
अपराधी हो प्रखर कमीना
जहर बुझी सुइयाँ
हों बेधती शिराओं को
पत्थर-दीवारें
हों थामती हवाओं को
आत्म-बोध
अपराधी हो प्रखर कमीना
ऐसे में जीना भी...
धूप की लहरियों को
शीतल जल कहना
गुब्बारे-सा
बढ़ता महाशून्य सहना
आँख-आँख मोती को
आँख-आँख पीना
धूप की लहरियों को
शीतल जल कहना
गुब्बारे-सा
बढ़ता महाशून्य सहना
आँख-आँख मोती को
आँख-आँख पीना
ऐसे में जीना भी...
-मुनीश मदिर
(मुनीश मदिर, मनीषा, 26 बी, देवनगर, नेपाल होटल के पास, मथुरा)
(मुनीश मदिर, मनीषा, 26 बी, देवनगर, नेपाल होटल के पास, मथुरा)
वाह, बहुत सुंदर ||
ReplyDeletebhaut hi acchi.. happy khubsurat....
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