July 18, 2011

नया दौर

परिवर्तन के
नये दौर मे
सब कुछ बदल गया ।

भूली कोयल
गीत सुरीले
मँहगाई की मारी
उपवन में
सन्नाटा छाया
पसर गई लाचारी
कैसे जुटें
नीड़ के साधन
व्याकुल हुई बया ।

जानबूझ कर बन्दर
मिलकर
मस्ती मार रहे
जहाँ लग रहा दाँव
वहीं से
माल डकार रहे
कोई जिये, मरे
उनको क्या
उन्हें न हया, दया ।

जंगल के राजा ने
सुनकर
राशन भिजवाया
कुछ को थोड़ा बाँट
तिकड़मी
जोड़ रहे माया
मन में लड्डू फूट रहे
संसाधन
मिला नया ।
परिवर्तन के
नये दौर मे
सब कुछ बदल गया ।।

-त्रिलोक सिंह ठकुरेला

3 comments:

  1. बहुत अच्छे और सार्थक नवगीत कर लिए वधाई।

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  2. बहुत सुन्दर नवगीत है।

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  3. परिवर्तन के नए दौर में
    सब कुछ बदल गया

    सुन्दर नवगीत, बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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