बहुत दिनों के बाद खिड़कियाँ खोली हैं
ओ वासंती पवन, हमारे घर आना।
जड़े हुए थे ताले सारे कमरों में
धूल भरे थे आले सारे कमरों में
उलझन और तनावों के रेशों वाले
पुरे हुए थे जाले सारे कमरों में
बहुत दिनों के बाद साँकलें डोली हैं
ओ वासंती पवन, हमारे घर आना।
एक थकन-सी थी नव भाव-तरंगों में
मौन उदासी थी वाचाल उमंगों में
लेकिन आज समर्पण की भाषा वाले
मोहक-मोहक, प्यारे-प्यारे रंगों में
बहुत दिनों के बाद खुशबुएँ घोली हैं
ओ वासंती पवन, हमारे घर आना।
पतझर ही पतझर था मन के मधुवन में
गहरा सन्नाटा-सा था अन्तर्मन में
जड़े हुए थे ताले सारे कमरों में
धूल भरे थे आले सारे कमरों में
उलझन और तनावों के रेशों वाले
पुरे हुए थे जाले सारे कमरों में
बहुत दिनों के बाद साँकलें डोली हैं
ओ वासंती पवन, हमारे घर आना।
एक थकन-सी थी नव भाव-तरंगों में
मौन उदासी थी वाचाल उमंगों में
लेकिन आज समर्पण की भाषा वाले
मोहक-मोहक, प्यारे-प्यारे रंगों में
बहुत दिनों के बाद खुशबुएँ घोली हैं
ओ वासंती पवन, हमारे घर आना।
पतझर ही पतझर था मन के मधुवन में
गहरा सन्नाटा-सा था अन्तर्मन में
लेकिन अब गीतों की स्वच्छ मुँडेरी पर
चिंतन की छत पर, भावों के आँगन में
बहुत दिनों के बाद चिरइयाँ बोली हैं
चिंतन की छत पर, भावों के आँगन में
बहुत दिनों के बाद चिरइयाँ बोली हैं
ओ वासंती पवन, हमारे घर आना।
-डॉo कुँअर बेचैन
बहुत सुन्दर भाव प्रवण नवगीत है।
ReplyDeleteडॉ .बैचैन साहब की एक अच्छी रचना शेयर करने के लिए शुक्रिया
ReplyDelete