आधा चैत हुआ !
कि जैसे पूरा चैत हुआ !!
सूरज तपा, हवा बन लू लेती है
कि जैसे पूरा चैत हुआ !!
सूरज तपा, हवा बन लू लेती है
बदन दबोच
पंछी आसमान में उड़ते हैं,
पंछी आसमान में उड़ते हैं,
होता है सोच
जीवन जैसे तपा जेठ-सा
साँसे जैसे आँधी अन्धड़
किसी बाज से उलझ गया है
जैसे प्रान-सुआ !
आधा चैत हुआ !!
भूले बिसरे गीतों-से
जीवन जैसे तपा जेठ-सा
साँसे जैसे आँधी अन्धड़
किसी बाज से उलझ गया है
जैसे प्रान-सुआ !
आधा चैत हुआ !!
भूले बिसरे गीतों-से
जैसे बादल घिर आये
आरोहों-अवरोहों में
आरोहों-अवरोहों में
जैसे बिजली बुझ जाए
गाने और न गाने की
कुछ ऐसी लाचारी है,
किसी सूर ने टूटी बीना का
ज्यों तार छुआ !
आधा चैत हुआ !!
सड़कों पर रिक्शे, इक्के,
गाने और न गाने की
कुछ ऐसी लाचारी है,
किसी सूर ने टूटी बीना का
ज्यों तार छुआ !
आधा चैत हुआ !!
सड़कों पर रिक्शे, इक्के,
ताँगे ऐसे चलते हैं,
अग्निदेश के चौराहों पर
अग्निदेश के चौराहों पर
ज्यों सपने जलते हैं
पास यहाँ से दूर वहाँ तक
कुछ छल है, मृग जल है
मेरी गति-
कि हिरन मर जाए, माँग न पाये दुआ
आधा चैत हुआ !
कि जैसे पूरा चैत हुआ !!
पास यहाँ से दूर वहाँ तक
कुछ छल है, मृग जल है
मेरी गति-
कि हिरन मर जाए, माँग न पाये दुआ
आधा चैत हुआ !
कि जैसे पूरा चैत हुआ !!
-गोपीकृष्ण गोपेश,
बहुत ही सुन्दर ग्रीष्म को अभीव्यंजित करता हुआ प्यारा नवगीत है।
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