May 14, 2011

जंगल का गीत

बचकर कहाँ चलेगा पगले, 
चारों ओर मचान है
हर मचान पर एक शिकारी, 
आँखों में शैतान है !

हवा धूल में बटमारीपन, 
छाया की तासीर गरम
सरमायेदारों के कपड़े, 
पहने घूम रहा मौसम
नद्दी-नालों की ज़ंजीरें 
हरियल टहनीदार नियम
न्यायाधीश पहाड़ मौन हैं, 
खा-पीकर रिश्वती रकम
सत्ता के जंगल की 
पत्ती-पत्ती बेईमान है !

चारों ओर अँधेरा गहरा, 
पहरा है संगीन का
महँगाई ने हाँका मारा, 
बजा कनस्तर टीन का
जिनको पाँव मिले वे भागे, 
पंजा पड़ा मशीन का
जहाँ बचाएँ प्राण, नहीं रे ! 
टुकड़ा मिला ज़मीन का
कहाँ छुपाएँ अंडे-बच्चे 
हर प्राणी हैरान है !

पहले पूरब, फिर पच्छिम में, 
गोली चली मचान से
दक्खिन थर-थर काँपा, 
उत्तर चीख़ पड़ा जी-जान से
सिसकी लेकर मध्यम धरती, 
बोली दबी ज़ुबान से
राम बचाए, राम बचाए, 
ऐसे हिन्दुस्तान से
लाठी, गोली, अश्रु-गैस, 
जीना क्या आसान है ?

-रमेश रंजक

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