October 3, 2006

शीतल छाँव बचाये रखना

फिर-फिर जेठ तपेगा
आँगन, हरियल पेड़ लगाये रखना,
विश्वासों के हरसिंगार
की शीतल छाँव बचाये रखना।

हर यात्रा खो गयी तपन में,
सड़कें छायाहीन हो गयीं,
बस्ती-बस्ती लू से झुलसी,
गालियां सब गमगीन हो गयीं
थका बटोही लौट न जाये, 
सुधि की जुही खिलाये रखना।

मुरझाई रिश्तों की टहनी
यूँ संशय की उमस बढ़ी है,
भूल गये पंछी उड़ना भी
यूँ राहों में तपन बढ़ी है।
घन का मौसम बीत न जाये, 
वन्दनवार सजाये रखना।

गुलमोहर की छाया में भी
गर्म हवा की छुरियाँ चलतीं,
तुलसीचौरा की मनुहारें
अब कोई अरदास न सुनतीं।
प्यासे सपने लौट न जायें, 
दृग का दीप जलाये रखना।


-राधेश्याम बन्धु

4 comments:

  1. राधेस्याम बन्धु जी का गीत अभिव्यक्ति,शब्द संयोंजन,संम्प्रेषणीयता और दृश्यचित्रण
    की दृष्टि से बहुत सुन्दर रचना है,बधाई।
    कमलेश कुमार दीवान ( अध्यापकएवम् लेखक)होशंगाबाद म.प्र.

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  2. प्यासे सपने
    लौट न जायें, द्दग के दीप जगाये रखना

    राधे श्याम जी, बहुत ख़ूब... मज़ा आ गया।
    गीत हो तो ऐसा

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  3. सशक्त बिम्ब और प्रतीकों के माध्यम से इस श्रेअष्ठ नवगीत की रचना हेतु साधुवाद.

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