आँगन, हरियल पेड़ लगाये रखना,
विश्वासों के हरसिंगार
की शीतल छाँव बचाये रखना।
हर यात्रा खो गयी तपन में,
सड़कें छायाहीन हो गयीं,
बस्ती-बस्ती लू से झुलसी,
गालियां सब गमगीन हो गयीं
थका बटोही लौट न जाये,
सुधि की जुही खिलाये रखना।
मुरझाई रिश्तों की टहनी
यूँ संशय की उमस बढ़ी है,
भूल गये पंछी उड़ना भी
यूँ राहों में तपन बढ़ी है।
घन का मौसम बीत न जाये,
मुरझाई रिश्तों की टहनी
यूँ संशय की उमस बढ़ी है,
भूल गये पंछी उड़ना भी
यूँ राहों में तपन बढ़ी है।
घन का मौसम बीत न जाये,
वन्दनवार सजाये रखना।
गुलमोहर की छाया में भी
गर्म हवा की छुरियाँ चलतीं,
तुलसीचौरा की मनुहारें
अब कोई अरदास न सुनतीं।
प्यासे सपने लौट न जायें,
गुलमोहर की छाया में भी
गर्म हवा की छुरियाँ चलतीं,
तुलसीचौरा की मनुहारें
अब कोई अरदास न सुनतीं।
प्यासे सपने लौट न जायें,
दृग का दीप जलाये रखना।
-राधेश्याम बन्धु
-राधेश्याम बन्धु
राधेस्याम बन्धु जी का गीत अभिव्यक्ति,शब्द संयोंजन,संम्प्रेषणीयता और दृश्यचित्रण
ReplyDeleteकी दृष्टि से बहुत सुन्दर रचना है,बधाई।
कमलेश कुमार दीवान ( अध्यापकएवम् लेखक)होशंगाबाद म.प्र.
प्यासे सपने
ReplyDeleteलौट न जायें, द्दग के दीप जगाये रखना
राधे श्याम जी, बहुत ख़ूब... मज़ा आ गया।
गीत हो तो ऐसा
सशक्त बिम्ब और प्रतीकों के माध्यम से इस श्रेअष्ठ नवगीत की रचना हेतु साधुवाद.
ReplyDelete"यहाँ तो कुछ हो ही नहीं रहा है!?"
ReplyDelete--
ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती, कोहरे में भोर हुई!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", मिलत, खिलत, लजियात ... ... .
संपादक : सरस पायस