August 31, 2023

कुछ न मिला जब

कुछ न मिला जब 
धनुर्धरों से
बंशी वारे से 
हार-हूर कर माँग रहे हैं
भील-भिलारे से 

ला चकमक तो दे
चिंतन में आग लगाना है
थोड़ी सी किलकारी दे
बच्चे बहलाना है
कैसे डरे-डरे बैठे हैं
अक्षर कारे से 
कुछ न मिला जब... 

हम पोशाकें पहन
पिघलते रहते रखे-रखे
तूने तन-मन कैसे साधा
नंग-मनंग सखे
हमको भी चंगा कर
गंडा, बूटी, झारे से 
कुछ न मिला जब... 

हम कवि हैं
चकोरमुख से अंगार छीनते हैं
बैठे-ठाले शब्दकोश के
जुएँ बीनते हैं
मिले तिलक छापे
गुरुओं के पाँव पखारे से 
कुछ न मिला जब... 

एक बददुआ-सी है मन में
कह दें, तो बक दूँ,
एक सेर महुआ के बदले
गोरी पुस्तक दूँ,
हमें मिला सो तू भी पा ले
ज्ञान उजारे से 
कुछ न मिला जब... 

-महेश अनघ

5 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 31मई 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
    >>>>>>><<<<<<<

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  2. सामयिक संदर्भों पर गहन अभ्व्यक्ति

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  3. Anonymous9:09 AM

    बहुत सुंदर नवगीत । रेणु चन्द्रा

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  4. ला चकमक तो दे
    चिंतन में आग लगाना है

    या
    हम कवि हैं
    चकोर मुख से अंगार छीनते हैं

    सुंदर शब्दों से पिरोया हुआ भावपूर्ण नवगीत

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