तू ने भी क्या निगाह डाली
री मंगले !
री मंगले !
मावस है स्वर्ण-पंख वाली
करधनियां पहन लीं मुंडेरों ने
आले ताबीज पहन आये
खड़े हैं कतार में बरामदे
सोने की कण्ठियाँ सजाये
मिट्टी ने आग उठाकर माथे
बिन्दिया सुहाग की बना ली
री मंगले!
मावस है स्वर्ण-पंख वाली
सरसरा गयीं देहरी-द्वार पर
चकरी-फुलझड़ियों की पायलें
बच्चों ने छतों-छतों दाग दीं
उजले आनन्द की मिसाइलें
तानता फिरे बचपन हर तरफ़
नन्हीं सी चटचटी दुनाली
री मंगले !
मावस है स्वर्ण-पंख वाली
द्वार-द्वार डाकिये गिरा गये
अक्षत-रोली-स्वस्तिक भावना
सारी नाराज़ियां शहरबदर
फोन-फोन खनकी शुभ कामना
उत्तर से दक्षिण सोनल-सोनल
झिलमिल रामेश्वरम्-मनाली
री मंगले !
मावस है स्वर्ण-पंख वाली
-रमेश यादव
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