September 19, 2023

साधो दरस परस सब छूटे

साधो दरस-परस सब छूटे 
सूख गई पन्नों की स्याही 
संवादों के रस छूटे
साधो! दरस परस सब छूटे।

मृत अतीत की नई व्याख्या 
पढ़ना सुनना है
शेष विकल्प नहीं अब कोई 
फिर भी चुनना है
रातें और संध्याएँ छूटीं 
अब कुनकुने दिवस छूटे 
साधो!...

नहीं निरापद हैं यात्राएँ 
उठते नहीं कदम
रोज-रोज सपनों का मरना
देख रहे हैं हम
हाथों से उड़ गए कबूतर 
कौन बताए कस छूटे
साधो! ...

आदमकद हो गए आइने
चेहरे बौने हैं
नोन, राई, अक्षत,सिंदूर के
जादू-टोने के
लहलहाई अपयश की फसलें 
जनम-जनम के यश छूटे 
साधो! ...
     
-शिवकुमार अर्चन

8 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ८ जुलाई २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ८ जुलाई २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  3. रोज-रोज सपनों का मरना
    देख रहे हैं हम
    हाथों से उड़ गए कबूतर
    कौन बताए कस छूटे
    साधो! दरस परस सब छूटे।
    –सत्य कथन
    सुन्दर रचना

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  4. शिव जी के साथ कटनी में कई बार गोष्ठियों में बैठा हूँ
    उनके गीतों को उनसे सुनना अद्भुत आनंद देता था.
    भोपाल में भी उनसे मिला हूं.
    वे गीतों के राजा थे
    कमाल के प्रतीक और बिंम्ब से सजे उनके गीत एक नई दुनिया से परिचित कराते थे.

    पिछले दिनों वे स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर गए

    सादर नमन
    विनम्र श्रद्धांजलि

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  5. सब छूटने पर भी काव्य की अजस्र धारा कल कल बह रही है

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  6. सुन्दर रचना

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  7. वाह!बहुत खूब!

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