अभी न होगा मेरा अन्त
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त
हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात
मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर
पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस
लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नवजीवन का अमृत
सहर्ष सींच दूँगा मैं
द्वार दिखा दूँगा फिर उनको
हैं मेरे वे जहाँ अनन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त
मेरे जीवन का यह है
जब प्रथम चरण
इसमें कहाँ मृत्यु ?
है जीवन ही जीवन
अभी पड़ा है आगे
सारा यौवन
स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर
बहता रे, बालक-मन
मेरे ही अविकसित राग से
विकसित होगा बन्धु
दिगन्त
अभी न होगा मेरा अन्त
-सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त
हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात
मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर
पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस
लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नवजीवन का अमृत
सहर्ष सींच दूँगा मैं
द्वार दिखा दूँगा फिर उनको
हैं मेरे वे जहाँ अनन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त
मेरे जीवन का यह है
जब प्रथम चरण
इसमें कहाँ मृत्यु ?
है जीवन ही जीवन
अभी पड़ा है आगे
सारा यौवन
स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर
बहता रे, बालक-मन
मेरे ही अविकसित राग से
विकसित होगा बन्धु
दिगन्त
अभी न होगा मेरा अन्त
-सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
निराला जी का मधुर नवगीत, संवेदनाओं से पूरित।
ReplyDeleteप्रबल जिजीविषा.. आस उल्लास व्यक्त करता गीत। निराला जी के नाम की तरह ही निराला गीत
ReplyDeleteअद्भुत गीत
ReplyDeleteनिराला जी प्रकृति के चितेरे हैं
, बहुत बहुत धन्यवाद सर गीत उपलब्ध कराने के लिए
उम्मीद की लौ सा, मन को हर्षित करता अत्युत्तम गीत।
ReplyDeleteभरपूर जीवन जीने की प्रेरणा देता हुआ निराला जी का सशक्त गीत। सचमुच निराला गीत।
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