October 23, 2011

स्वर्ण-मृगों से छले गए

हम तापस
वन के अनुरागी
स्वर्ण-मृगों से छले गए।

रहे भटकते
जीवन-भर ही
एक अबूझी प्यास लिए
आँखों में
मधुमय वसंत का
खंडित-सा इतिहास लिए
हर अरण्य
जन के अनुरागी
मौन-शरों से छले गए।

अनुबंधों के
कोलाहल में
अरथवान सब छूट गया
अंतर्मन का
उजला दर्पण
बस, छूते ही टूट गया
हम निश्छल
मन के अनुरागी
अश्रु-दृगों से छले गए।

-रमेश चन्द्र पंत

(आजकल, फरवरी-2010 से साभार)-"उत्कर्ष", विद्यापुर, द्वाराहाट, अल्मोड़ा- 263653(उत्तराखण्ड)

8 comments:

  1. बहुत ही भावपूर्ण रचना.....

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  2. सुन्दर सृजन , प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.

    समय- समय पर मिले आपके स्नेह, शुभकामनाओं तथा समर्थन का आभारी हूँ.

    प्रकाश पर्व( दीपावली ) की आप तथा आप के परिजनों को मंगल कामनाएं.

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  3. अंतर्मन का
    उजला दर्पण
    बस, छूते ही टूट गया
    हम निश्छल
    मन के अनुरागी
    अश्रु-दृगों से छले गए।

    बहुत सुन्दर ..

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  4. सुन्दर नवगीत.... बढ़िया लेखन...

    आपको दीप पर्व की सपरिवार सादर शुभकामनाएं....

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ....

    प्रकाश पर्व की बहुत बहुत शुभ कामनाये
    सादर

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  6. नवगीत !
    बहुत ही सुन्दर सृजन!

    दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें!
    जहां जहां भी अन्धेरा है, वहाँ प्रकाश फैले इसी आशा के साथ!
    chandankrpgcil.blogspot.com
    dilkejajbat.blogspot.com
    पर कभी आइयेगा| मार्गदर्शन की अपेक्षा है|

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  7. अनुबंधों के कोलाहल में अरथवान सब छूट गया....
    .......

    भावपूर्ण प्रस्तुति के लिये बहुत बधाई और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ।

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  8. अनुबंधों के कोलाहल में अरथवान सब छूट गया....
    .......

    भावपूर्ण प्रस्तुति के लिये बहुत बधाई और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ।

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