हम तापस
वन के अनुरागीस्वर्ण-मृगों से छले गए।
रहे भटकते
जीवन-भर ही
एक अबूझी प्यास लिए
आँखों में
मधुमय वसंत का
खंडित-सा इतिहास लिए
हर अरण्य
जन के अनुरागी
मौन-शरों से छले गए।
अनुबंधों के
कोलाहल में
अरथवान सब छूट गया
अंतर्मन का
उजला दर्पण
बस, छूते ही टूट गया
हम निश्छल
मन के अनुरागी
अश्रु-दृगों से छले गए।
-रमेश चन्द्र पंत
(आजकल, फरवरी-2010 से साभार)-"उत्कर्ष", विद्यापुर, द्वाराहाट, अल्मोड़ा- 263653(उत्तराखण्ड)
(आजकल, फरवरी-2010 से साभार)-"उत्कर्ष", विद्यापुर, द्वाराहाट, अल्मोड़ा- 263653(उत्तराखण्ड)
बहुत ही भावपूर्ण रचना.....
ReplyDeleteसुन्दर सृजन , प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteसमय- समय पर मिले आपके स्नेह, शुभकामनाओं तथा समर्थन का आभारी हूँ.
प्रकाश पर्व( दीपावली ) की आप तथा आप के परिजनों को मंगल कामनाएं.
अंतर्मन का
ReplyDeleteउजला दर्पण
बस, छूते ही टूट गया
हम निश्छल
मन के अनुरागी
अश्रु-दृगों से छले गए।
बहुत सुन्दर ..
सुन्दर नवगीत.... बढ़िया लेखन...
ReplyDeleteआपको दीप पर्व की सपरिवार सादर शुभकामनाएं....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ....
ReplyDeleteप्रकाश पर्व की बहुत बहुत शुभ कामनाये
सादर
नवगीत !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सृजन!
दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें!
जहां जहां भी अन्धेरा है, वहाँ प्रकाश फैले इसी आशा के साथ!
chandankrpgcil.blogspot.com
dilkejajbat.blogspot.com
पर कभी आइयेगा| मार्गदर्शन की अपेक्षा है|
अनुबंधों के कोलाहल में अरथवान सब छूट गया....
ReplyDelete.......
भावपूर्ण प्रस्तुति के लिये बहुत बधाई और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ।
अनुबंधों के कोलाहल में अरथवान सब छूट गया....
ReplyDelete.......
भावपूर्ण प्रस्तुति के लिये बहुत बधाई और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ।