ये कैसा देश है
कैसे कैसे चलनअंधों का कजरौटे करते अभिनंदन ।
तितली के पंखों पर
बने बहीखाते
खुशबू पर भी पहरे
बैठाए जाते
डरा हुआ रवि गया चमगादड़ की शरण ।
लिखे भोजपत्रों पर
झूठे हलफ़नामे
सारे आंदोलन हैं
केवल हंगामे
कुत्ते भी टुकड़ों का दे रहे प्रलोभन ।
चाटुकारिता से
सार्थक होती रसना
क्षुब्ध चेतना मेरी
उफ् गैरिक वसना
ज्वालामुखि बेच रहे कुल्फियाँ सरीहन ।
-उमाकान्त मालवीय
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 26-09-2011 को सोमवासरीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
ReplyDeleteभाई डॉ० जगदीश व्योम जी उमाकांत जी के नवगीत यहाँ पढ़वाने के लिए आभार
ReplyDeleteभाई डॉ० जगदीश व्योम जी उमाकांत जी के नवगीत यहाँ पढ़वाने के लिए आभार
ReplyDeleterachanakar ko naman...ek ek shabd santrasvadiyon ke khilaf vidroh karti nazar aati hai... padhane ke liye shukriya
ReplyDeleteधन्यवाद चन्द्र भूषण मिश्र जी ! चर्चा मंच पर चर्चा करवा कर आप रचनाकार की रचना को अगणित लोगों तक पहुँचाने का महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं।
ReplyDeleteधन्यवाद तुषार जी ।
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