July 30, 2011

मनचाहे सपनों को


मनचाहे सपनों को
कोख में दबा
बंजारे दिन
हो गए हवा

नयनों के गेह से
गूँगा विश्वास
सहमा-सा देख रहा
अनुभव की प्यास
तन-मन में रमी हुई
नींद की दवा

सूली पर लटके-से
लगते हैं दिन
चिड़ियों-सी उड़ जातीं
रातें दुलहिन
सड़कों पर बिखरा है
मौन का रवा
हो गए हवा ।

-अश्वघोष


15 comments:

  1. नवगीत अभिधेयात्मक एवं व्यंजनात्मक शक्तियों को लिए हुए है।

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  2. बहुत ही खुबसूरत शब्दों का समायोजन....

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  3. सुन्दर नवगीत

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  4. मनोज कुमार जी ! डा० अश्वघोष जी के नवगीत पर आपकी टिप्पणी पढ़कर प्रसन्नता हो रही है।

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  5. चन्द्रभूषण मिश्र जी ! ब्लाग पर प्रकाशित सामग्री की चर्चा करने का मंच देकर आप एक अच्छा कार्य ही नहीं कर रहे हैं बल्कि लेखन और अच्छे लेखन के लिए रचनाकारों को प्रोत्साहित भी कर रहे हैं। दरअसल हमारे यहाँ वरिष्ठ रचनाकार अभी भी इण्टरनेट से दूर ही हैं, उन्हें इस मैदान में लाने के लिए जो किया जाना चाहिये चर्चा मंच के बहाने आप उसे बखूबी निभा रहे हैं। मेरा पूर्ण सहयोग आपके साथ है।

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  6. बहुत खूबसूरत रचना ... सुन्दर अभिव्यक्ति

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  7. sunder shabdo se saji rachna...

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  8. आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें
    बहुत ही खुबसूरत शब्दों का समायोजन....
    लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
    अगर आपको love everbody का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ।

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  9. बहुत सुन्दर गीत....
    सादर....

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  10. आप सभी का डा० अश्वघोष के नवगीत पर प्रतिक्रिया के लिये आभार।

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  11. खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  12. man ko bha gayi ye geet...wah

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  13. A bunch of good words,of heart & possessive mind ... / thanks ji

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  14. बहुत सुन्दर नवगीत है।

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