याचक बन कर
कृपण सूर्य का
झुक झुक कर
वन्दन करते हैं
ऊँचाई पर खड़े हुए
ये वृक्ष
बहुत बौने लगते हैं
भ्रम है इनको
जब चाहें ये
आसमान
मुट्ठी में भर लें
जब चाहें
तारों को तोड़ें
चन्दा को
सिरहाने रख लें
दरबारी हैं ये पर्वत के
अंधड़ आने पर हिलते हैं
अभिमानी हैं
इनके सर पर
अंहकार के
सींग उगे हैं
इन्द्रधनुष
कंधे पर लादे
मेघों के ये
गले लगे हैं
इनकी
तारीफें कर करके
होंठ हवाओं के छिलते हैं
-कुमार शिव
कृपण सूर्य का
झुक झुक कर
वन्दन करते हैं
ऊँचाई पर खड़े हुए
ये वृक्ष
बहुत बौने लगते हैं
भ्रम है इनको
जब चाहें ये
आसमान
मुट्ठी में भर लें
जब चाहें
तारों को तोड़ें
चन्दा को
सिरहाने रख लें
दरबारी हैं ये पर्वत के
अंधड़ आने पर हिलते हैं
अभिमानी हैं
इनके सर पर
अंहकार के
सींग उगे हैं
इन्द्रधनुष
कंधे पर लादे
मेघों के ये
गले लगे हैं
इनकी
तारीफें कर करके
होंठ हवाओं के छिलते हैं
-कुमार शिव
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