हाँ, जीवन-भर
हम कठपुतली रहे समय के
हमने देखे
किसिम-किसिम के
स्वाँग हाट के
बाँचे मंतर
दरवाज़े पर लिखे लाट के
उनके रहते
सुन न सके हम
गान हृदय के
राजाओं के हर खेले में
हम शामिल थे
क़त्ल हुए हम कभी
कभी हम ही क़ातिल थे
नारे बने
ख़ुशी से हम
शाहों की जय के
गिरवी रखकर
पुरखों की थाती हम लाये
सुख-सुविधाएँ
और हुए युग के चौपाये
भूल गये हम
जो सपने थे
सूर्योदय के
-कुमार रवीन्द्र
हम कठपुतली रहे समय के
हमने देखे
किसिम-किसिम के
स्वाँग हाट के
बाँचे मंतर
दरवाज़े पर लिखे लाट के
उनके रहते
सुन न सके हम
गान हृदय के
राजाओं के हर खेले में
हम शामिल थे
क़त्ल हुए हम कभी
कभी हम ही क़ातिल थे
नारे बने
ख़ुशी से हम
शाहों की जय के
गिरवी रखकर
पुरखों की थाती हम लाये
सुख-सुविधाएँ
और हुए युग के चौपाये
भूल गये हम
जो सपने थे
सूर्योदय के
-कुमार रवीन्द्र
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