March 24, 2016

विडम्बना

  
गहन उदासी के आँगन को
उत्सव दिखना था
बालू के पन्ने पर हमको
दरिया लिखना था

पथरीला सच पाँव तले था
मिट्टी के सपने सर पर
द्वेष ईर्ष्या के गड्ढों से
भरसक चले सदा बचकर
मगर जहाँ पर मिली ढलाने
रस्ता चिकना था

पंखों की सब रद्द उड़ाने
कुहरे का परिवेश मिला
बूँदों को काजल की हद में
रहने का आदेश मिला
घूम-घूमकर एक नोक पर  
लट्टू टिकना था

-संध्या सिंह

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