November 17, 2015

उन्मन-उन्मन सुबह

उन्मन-उन्मन सुबह
और फिर
उन्मन-उन्मन शाम
दिन के माथे जड़ी धूल पर
उखड़े हुए प्रणाम
सड़कों पर
बदरंग टोपियाँ-झण्डों की भरमार
चाभी-भरे
खिलौनों के जुलूस करते बेगार
वक़्त गुज़ारे घोर नास्तिक
लेकर हरि का नाम
दिन के माथे जड़ी धूल पर
उखड़े हुए प्रणाम
होश फाख्ता
करते बगुला-भगती शांति-कपोत
सूरज की
रोशनी पी गये, नशेबाज़ खद्योत,
जो जितना बदनाम हो रहा
वह उतना सरनाम
दिन के माथे जड़ी धूल पर
उखड़े हुए प्रणाम

होटल के
प्यालों से चिपके क्षमताओं के होंठ
स्वगत-गालियों में
करते हैं खुद अपने पर चोट
भीतर-भीतर युद्ध हो रहा
बाहर युद्ध-विराम
दिन के माथे जड़ी धूल पर
उखड़े हुए प्रणाम

-रामस्वरूप सिन्दूर

No comments:

Post a Comment