धूप से
संवाद करनाआ गया है
उम्र भर
सच को सराहा
सच कहा
झूठ का
हर वार
सीने पर सहा
क्या डरायेंगे
हिरण कश्यप हमें
स्वयं को
प्रहलाद करना
आ गया है
धूल वाले रास्ते
हक के सबब
राजमार्गों से करेंगे
होड़ अब
कान वाले
खोलकर
सुन लें सभी
मौन को
प्रतिवाद करना
आ गया है
-संजीव गौतम
बहुत ही अच्छा गीत है।
ReplyDeleteसादर
प्रभावशाली कविता! प्रसंग-गर्भत्व ने रचना को एकेडेमिक बनाया है। कथन-भंगी में ताज़गी है।
ReplyDelete*महेंद्रभटनागर
E-Mail : drmahendra02@gmail.com
Phone : 0751-4092908
प्रभावशाली कविता! प्रसंग-गर्भत्व ने रचना को एकेडेमिक बनाया है। कथन-भंगी में ताज़गी है।
ReplyDelete*महेंद्रभटनागर
E-Mail : drmahendra02@gmail.com
Phone : 0751-4092908
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 06-02-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
अतिसुन्दर
ReplyDeleteoj poorn prabhavshali rachana bahut achhi lagi ...badhai.
ReplyDeleteअभिनव शैली में लिखा गया शानदार नवगीत .अर्थवान भावपूर्ण .
ReplyDeleteप्रभावशाली भाव ..बहुत बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeletebahut hi sundar...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...प्रभावशाली प्रस्तुति..
ReplyDeleteबधाई.
धूप से यूँ ही संवाद होता रहे । बहुत सुन्दर गीत
ReplyDeleteधूप से यूँ ही संवाद होता रहे । बहुत सुन्दर गीत
ReplyDeleteBehtareen geet..
ReplyDeleteantim banktiyaan to ekdum josh se bhar gai.. :)
palchhin-aditya.blogspot.in
मौन को
ReplyDeleteप्रतिवाद करना
आ गया है.
प्रखर भाव. सुंदर प्रस्तुति.
बहुत प्यारा नवगीत है
ReplyDeleteबहुत प्यारे और भावपूर्ण नवगीत के लिए वधाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
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