February 5, 2012

धूप से संवाद

धूप से
संवाद करना
आ गया है

उम्र भर
सच को सराहा
सच कहा
झूठ का
हर वार
सीने पर सहा
क्या डरायेंगे
हिरण कश्यप हमें
स्वयं को
प्रहलाद करना
आ गया है

धूल वाले रास्ते
हक के सबब
राजमार्गों से करेंगे
होड़ अब
कान वाले
खोलकर
सुन लें सभी
मौन को
प्रतिवाद करना
आ गया है

-संजीव गौतम

17 comments:

  1. बहुत ही अच्छा गीत है।

    सादर

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  2. प्रभावशाली कविता! प्रसंग-गर्भत्व ने रचना को एकेडेमिक बनाया है। कथन-भंगी में ताज़गी है।
    *महेंद्रभटनागर
    E-Mail : drmahendra02@gmail.com
    Phone : 0751-4092908

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  3. प्रभावशाली कविता! प्रसंग-गर्भत्व ने रचना को एकेडेमिक बनाया है। कथन-भंगी में ताज़गी है।
    *महेंद्रभटनागर
    E-Mail : drmahendra02@gmail.com
    Phone : 0751-4092908

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 06-02-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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  5. अतिसुन्दर

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  6. oj poorn prabhavshali rachana bahut achhi lagi ...badhai.

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  7. अभिनव शैली में लिखा गया शानदार नवगीत .अर्थवान भावपूर्ण .

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  8. प्रभावशाली भाव ..बहुत बढ़िया प्रस्तुति

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  9. बहुत सुन्दर...प्रभावशाली प्रस्तुति..
    बधाई.

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  10. धूप से यूँ ही संवाद होता रहे । बहुत सुन्दर गीत

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  11. धूप से यूँ ही संवाद होता रहे । बहुत सुन्दर गीत

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  12. Behtareen geet..
    antim banktiyaan to ekdum josh se bhar gai.. :)

    palchhin-aditya.blogspot.in

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  13. मौन को
    प्रतिवाद करना
    आ गया है.

    प्रखर भाव. सुंदर प्रस्तुति.

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  14. बहुत प्यारा नवगीत है

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  15. बहुत प्यारे और भावपूर्ण नवगीत के लिए वधाई

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  16. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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