April 1, 2014

खनके चिड़ियों के कंगन

आँख ऊषा ने खोली
खनके चिड़ियों के कंगन

किरणें रहीं टटोल
गेह के कोने-कोने को
रातों के प्रहरी उलूक
जाते हैं सोने को
आँगन में आ गया, महकता
सुरभित वृंदावन

करती हवा ठिठोली
कलियों ने घूँघट खोले
सगुनौती पढ़ रहा
मुँडेरों पर कागा बोले
बड़े-बड़े हो गये
खुशी से, फूलों के लोचन

छन्द किसानों ने लिख डाले
हल से धरती पर
स्वप्न ऊगने लगे सुनहरे
बंजर पड़ती पर
धरती पर उतार लाये
ज्यों कृषक गंध मादन

-आचार्य भगवत दुबे

4 comments:

  1. आभार आदरणीय सर अनमोल मोती इस ब्लॉग पर मिल जाते हैं

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  2. शब्दों के माध्यम से,मनोहारी विवरण

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  3. बहुत सुन्दर उपमान प्रयोग किये हैं, अच्छी रचना है. बधाई.

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  4. पुरुषोत्तम पाण्डेय8:32 PM

    बहुत सुन्दर उपमान प्रयोग में लाये हैं, सुन्दर रचना. बधाई है.

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