किसी ने बनाए, किसी ने मिटाए।
किसी ने लिखी आँसुओं से कहानी
किसी ने पड़ा किन्तु दो बूँद पानी
इसी में गए बीत दिन ज़िन्दगी के
गई घुल जवानी, गई मिट निशानी।
विकल सिन्धु के साध के मेघ कितने
धरा ने उठाए, गगन ने गिराए।
शलभ ने शिखा को सदा ध्येय माना,
किसी को लगा यह मरण का बहाना
शलभ जल न पाया, शलभ मिट न पाया
तिमिर में उसे पर मिला क्या ठिकाना?
प्रणय-पंथ पर प्राण के दीप कितने
मिलन ने जलाए, विरह ने बुझाए।
भटकती हुई राह में वंचना की
रुकी शांत हो जब लहर चेतना की
तिमिर-आवरण ज्योति का वर बना तब
कि टूटी तभी श्रृंखला साधना की।
नयन-प्राण में रूप के स्वप्न कितने
निशा ने सुलाये, उषा ने जगाये ।
सुरभि की अनिल-पंख पर मौन भाषा
उड़ी, वंदना की जगी सुप्त आशा
तुहिन-बिन्दु बनकर बिखर, पर, गए स्वर
नहीं बुझ सकी अर्चना की पिपासा।
किसी के चरण पर वरण-फूल कितने
लता ने चढ़ाए, लहर ने बहाए।
-शम्भुनाथ सिंह
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 29-08-2011 को सोमवासरीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
ReplyDeleteचर्चा मंच पर चर्चा करने विषयक सूचना देने के लिये आभार ।
ReplyDeleteअर्थपूर्ण रचना .....
ReplyDeleteसुन्दर रचना .
ReplyDeleteसोमवती अमावस्या एवं पोला पर्व की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं .
मुझे गर्व हेै कि मेरी चाची डा० चेतना सिंह डा० शम्भूनाथ सिंह की पुत्री हैै
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