June 25, 2011

याद आये फिर तुम्हारे केश

याद आये फिर तुम्हारे केश,
मन-भुवन में फिर अंधेरा हो गया
पर्वतों का तन
घटाओं ने छुआ
घाटियों का ब्याह
फिर जल से हुआ
याद आये फिर तुम्हारे नैन
देह मछली, मन मछेरा हो गया।

प्राण-वन में
चन्दनी ज्वाला जली
प्यास हिरनों की
पलाशों ने छली
याद आये फिर तुम्हारे होंठ
भाल, सूरज का बसेरा हो गया।

दूर मन्दिर में जगी
फिर रागिनी
गन्ध की बहने लगी
मनदाकिनी
याद आये फिर तुम्हारे पाँव,
प्रार्थना हर गीत मेरा हो गया।

 -किशन सरोज

7 comments:

  1. बहुत सुंदर नवगीत।

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  2. याद आये फिर तुम्हारे केश,
    मन-भुवन में फिर अंधेरा हो गया
    पर्वतों का तन
    घटाओं ने छुआ
    घाटियों का ब्याह
    फिर जल से हुआ
    याद आये फिर तुम्हारे नैन
    देह मछली, मन मछेरा हो गया।

    बहुत सुन्दर भावो और प्रतीको से लबरेज़ कविता मन मोह लिया।

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  3. बहुत खूबसूरत रचना ..

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  4. बहुत सुन्दर रचना...बधाई

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  5. Bahut Pyara.
    TRILOK SINGH THAKURELA
    Bunglow No. 99,
    Opp. Railway Hospital,
    ABU ROAD -307026
    (RAJASTHAN)

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  6. मनोज कुमार जी, वन्दना जी, संगीता स्वरूप जी, चन्द्रभूषण मिश्रा जी एवं अनामिका जी किशन सरोज जी के इस नवगीत पर टिप्पणी करने के लिये बहुत बहुत आभार। हमारा प्रयास रहेगा कि सर्वश्रेष्ठ नवगीत हम यहाँ नवगीत प्रेमियों के लिये प्रकाशित कर सकें। आप लोगों ने नवगीत ब्लाग को देखा, पढ़ा और सराहा इसके लिये पुनः आभार ।

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