September 6, 2023

हम उदास हैं और नदी में आग लगी है

 हम उदास हैं
और नदी में आग लगी है
कैसा है दिन ! 
 
अंधे सपनों का आश्वासन
हमें मिला है
नदी-किनारे फिर
ज़हरीला फूल खिला है
दिन-भर सोई
आँख बावरी रात जगी है
कैसा है दिन! 

छली हवाओं ने
जंगल में पतझर बाँटे
सीने में चुभ रहे
सैकड़ों पिछले काँटे
 बस्ती-बस्ती
शाहों की चल रही ठगी है
कैसा है दिन! 

आदमक़द कारों से निकले
चौपट बौने
सहमे घूम रहे हैं
जंगल में मृगछौने
धुनें पराई
हम सबको लग रहीं सगी हैं
कैसा है दिन  

-कुमार रवीन्द्र

6 comments:

  1. Anonymous9:21 AM

    सोचने को विवश करती रचना

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  2. बहुत बढ़िया।

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  3. वाह बहुत खूब कहा आपने
    आदमक़द कारों से निकले
    चौपट बौने.....

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  4. आदमकद कारों से निकले
    चौपट बौने

    बेहतरीन नव गीत

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  5. वाह हम उदास, नदी में आग लगी है इस पंक्ति ने मंत्रमुग्ध कर दिया । शानदार

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  6. आलोक मिश्रा9:03 PM

    छली हवाओं ने
    जंगल में पतझर बाँटे...
    बहुत बढ़िया नवगीत

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