May 17, 2011

गमलों में उग आई नागफनी

हमने कलमें गुलाब की रोपी थीं
पर गमलों में उग आई नागफनी

जीवन ऐसे मोड़ों तक आ पहुँचा
आ जहाँ हृदय को सपने छोड़ गये
मरघट की सूनी पगडंडी तक ज्यों
कंधा दे शव को अपने छोड़ गये
सावन-भादो के मेघों के जैसा
मन भर-भर आया पीड़ा हुई घनी
हमने कलमें गुलाब की रोपी थीं
पर गमलों में उग ...

आशा के सुमन महक तो जाते पर
मुस्कानों वाले भ्रम ने मार दिया
पतझर को तो बदनामी व्यर्थ मिली
हमको मादक मौसम ने मार दिया
पूजन से तो इनक़ार नहीं था पर
अपने घर की मंदिर से नहीं बनी
हमने कलमें गुलाब की रोपी थीं
पर गमलों में उग ...

रंगों-गंधों में रहा नहाता पर
अपनापन इस पर भी मजबूरी है
कीर्तन में चाहे जितना चिल्लाए
मन की ईश्वर से फिर भी दूरी है
सौगंधों में अनुबंध रहे बँधते
पर मन में कोई चुभती रही अनी
हमने कलमें गुलाब की रोपी थीं
पर गमलों में उग ...

समझौतों के गुब्बारे बहुत उड़े
उड़ते ही सबकी डोरी छूट गई
विश्वास किसे क्या कहकर बहलाते
जब नींद लोरियाँ सुनकर टूट गई
सम्बंधों से हम जुड़े रहे यों ही
ज्यों जुड़ी वृक्ष से हो टूटी टहनी
हमने कलमें गुलाब की रोपी थीं
पर गमलों में उग आई नागफनी।

-डॅा. धनंजय सिंह

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